स्लिप डिस्क क्या है ?
रीढ़ की हड्डी में मौजूद कशेरुका या स्पाइनल कॉर्ड को सहारा देने के लिए छोटी छोटी गद्देदार डिस्क होती है जो रीढ़ की हड्डी को झटकों से बचाती है, साथ ही उसे लचीला बनाए रखती है, जब किसी कारणवश डिस्क छतिग्रस्त हो जाती है तो यह सूजकर या टूट कर खुल जाती है, जिसे स्लिप डिस्क कहते हैं।
हर्नियेटेड डिस्क को टूटा हुआ डिस्क या स्लिप्ड डिस्क भी कहा जाता है, हालांकि इसमें पूरी डिस्क टूटती या फिसलती नहीं है।
स्लिप डिस्क का मतलब यह नहीं है की डिस्क अपनी जगह से फिसल गई हो, इसका मतलब है की डिस्क अपनी सामान्य सीमाओं से आगे बढ़ जाती है, या सूज जाती है या डिस्क की बाहरी दिवार छतिग्रस्त हो जाती है जिससे उसमे मौजूद द्रव्य का रिसाव रीढ़ की हड्डी या नजदीकी तंत्रिका पर हो जाता है।
जिसके कारण एक हाथ या पैर में दर्द , कमजोरी,सुन्नपन हो सकता है। स्लिप डिस्क रीढ़ की हड्डी के किसी भी हिस्से में हो सकती है, लेकिन अधिकांशतः यह पीठ के निचले हिस्से को प्रभावित करता है।
स्लिप डिस्क के लक्षण
शरीर के एक तरफ के हिस्से में दर्द या motionlessness होना। हाथ या पैरों तक दर्द का फैलाना, रात के समय दर्द बढ़ जाना या कुछ गतिविधिओं से दर्द बढ़ जाना। खड़े होने या बैठने से दर्द बढ़ जाना। थोड़ी दुरी पर चलने से दर्द बढ़ जाना, मांसपेशियों की कमजोरी, प्रभावित क्षेत्र में झुनझुनी दर्द और जलन।
- शरीर के एक हिस्से में लगातार दर्द रहना
- दर्द का हाथ और पैरों की तरफ फैलना
- रात में अचानक दर्द बढ़ जाना
- खड़े होने या चलने पर अधिक दर्द होना
- डिस्क के हिस्सों में झनझनाहट और जलन महसूस होना
- मांसपेशियों में कमजोरी।
कैसे हो सकती है स्लिप डिस्क की परेशानी?
स्लिप डिस्क की मुख्य वजह ज्यादातर चोट लगने से होती है, लेकिन अपनी शारीरिक क्षमता से ज्यादा भारी सामान उठाने या गलत तरीके से उठने -बैठने , से भी स्लिप डिस्क होने का खतरा रहता है। इसलिए सतर्क रहने जरूरत है।
स्लिप डिस्क या हर्नियेटेड डिस्क के प्रकार
सर्वाइकल डिस्क स्लिप : सर्वाइकल डिस्क स्लिप यह गर्दन में होता है और पांचवीं व छठी और छठी व सातवी कशेरुका के बीच में होता है गर्दन में दर्द के प्रमुख कारणों में से एक है। गर्दन के साथ ही कंधे की हड्डी, बांह, हाथ, और सिर के पिछले भाग में भी दर्द होता है।
इससे मरीज को सिर के पिछले हिस्से , गर्दन, कंधे की हड्डी हाथों में सुन्नपन या तीव्र दर्द होता है और चक्कर भी आ सकते हैं।
थोरेसिक डिस्क स्लिप : थोरेसिक डिस्क स्लिप तब होती है जब रीढ़ की हड्डी के बीच के हिस्से में आस-पास दबाव पड़ता है। हालाँकि इसके होने की संभावना बहुत कम होती है। यह t 1 से t 2 कशेरुक के क्षेत्र को प्रभावित करता है। स्लिप डिस्क का यह प्रकार कंधे और पीठ के बीच में दर्द उत्पन्न कर देता है। इसके साथ ही कभी कभी दर्द स्लिप डिस्क की जगह से होते हुए कूल्हे, पैरों, हाथ, गर्दन, और पैर के पंजों तक भी जा सकता है।
लंबर डिस्क स्लिप : लम्बर डिस्क स्लिप रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में होता है, चौथी l 4 और पांचवी कशेरुका l 5 और कमर के पीछे की तिकोनी हड्डी के बीच दबाब पड़ने से पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे, जांघ और गुदा में दर्द होता है। सुन्नपन और दर्द कमर से पैरों और उँगलियों तक जाता है।
स्लिप डिस्क के उपचार
जब स्लिप डिस्क का मर्ज बढ़ जाता है, और सभी तरह के प्रयास विफल हो जाते हैं तो केवल ऑपरेशन ही विकल्प बचता है।
फिजियोथेरेपी : अधिकतर लोगों को व्यायाम करने से बहुत लाभ होता है। स्लिप डिस्क के पीड़ितों को फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बताये गए व्यायाम को नियमित रूप से करना चाहिए। वह ऐसे व्यायाम कराते हैं, जो कमर व आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।
शारीरिक व्यायाम : सप्ताह में 5 दिन 20-30 मिनट के लिए एरोबिक गतिविधि हृदय स्वास्थ्य में सुधार करती है। घायल होने पर, एक ऐसी गतिविधि का पीछा करना जो घायल मांसपेशी समूह या जोड़ से बचा जाता है, ठीक होने के दौरान शारीरिक कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
गर्म गद्दी hot pad : दर्दनाक मांसपेशियों या जोड़ों को शांत करता है और त्वचा के संक्रमण को दूर करने में मदद कर सकता है।
मालिश : दर्द को दूर करने के लिए रीढ़ को समायोजित करना और पीठ की मांसपेशियों की मालिश करना।
स्ट्रेचिंग : व्यायाम लचीलेपन में सुधार कर सकते हैं और शारीरिक कार्य में सुधार कर सकते हैं।
शारीरिक चिकित्सा : व्यायाम के माध्यम से मांसपेशियों की ताकत और कार्य को पुनर्स्थापित करता है।
दवाएं : इसमें खिंचाव व दर्द दूर करने के लिए मसल्स रिलेक्सर्स दवाएं देते हैं।
ओपन सर्जरी : व्यायाम व दवाओं का सेवन करने पर भी आराम नहीं मिलता, तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। सर्जन डिस्क के क्षतिग्रस्त भाग को निकाल देता है, इसे माइक्रोडिस्केक्टॉमी कहते हैं। गंभीर मामलों में डॉक्टर डिस्क बदलते हैं।
ओजोन थेरेपी : इसे ओजोन्युक्लियोलाइसिस भी कहा जाता है। इसमें प्रभावित डिस्क में ओजोन का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे तुरंत दर्द से आराम मिलता है। इसकी सलाह उन्हें दी जाती है, जिनकी तंत्रिकाओं का निचला भाग दब जाता है, जिससे पैरों में तेज दर्द होता है। ओजोन थेरेपी में चीरा लगाने की जरूरत नहीं होती।
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